उत्तराखंड

पलायन के कारण विरान पड़े हैं पुस्तेने घर

खेतीबाड़ी न करने से कोठार भी पड़े हैं खाली

बड़कोट। जनपद उत्तरकाशी के दर्जनों गांव में आज भी दादा परदादाओ के पुस्तेने घर मौजूद हैं।घर के डिजाइन इस तरह बने हैं कि आज के कम्प्यूटर युग में भी इनका मुकाबला कोई नही कर सकता।मकान इस तरह बनाये जाते हैं कि सर्दियों में गरम व गर्मियों में ठंडे रहते हैं।

मकानों में ज्यादा लकड़ी ही उपयोग में लायी जाती थी।जिस मकान पर पूरा परिवार रहता था उससे कुछ दूरी पर एक कुठार रहता था।जिसमें हर तरह के अन्न का भंडारण होता था। कोठार को मोटी लकड़ी से बनाया जाता था ,उसका दरवाजा कम से कम आधा फिट मोटे तख्ते का होता है जो सैकड़ों साल तक भी खराब नही हो सकता। बड़कोट के गंगनानी निवासी रामचन्द्री का कहना है कि कोठार में सात गांजे(खाने) बने हैं ,एक खाने में लगभग बीस बोरी धान गेंहू आ जाते हैं।

कोठार के अंदर चारों तरफ ऊपर वाले भाग में कम होने वाले अन्न के लिए भी कुछ छोटे खाने बने होते हैं।जिसमें चौलाई, झगोरा, चिणा, बाजरा आदि रखे जाते हैं।लेकिन आज खेती बाड़ी में कोई ध्यान नहीं दे रहा है जिस कारण कोठार भी खाली पड़े हैं।पहले कोठार में हर तरह की फसलों का भंडारण से भरा रहता था।पुराने मकानों में भी आज की पीढ़ी रहना पसंद नहीं कर रही है।पुराने मकान धीरे धीरे वीरान होते जा रहे हैं।

पहाड़ो में सुविधाओं का अभाव होने के कारण लोग धीरे धीरे पलायन कर रहे हैं । 22 साल से सरकार पलायन रोकने के कई तरह के वादे कर तो लेती है लेकिन पलायन का आंकड़ा बढ ही रहा है।हर नेता प्रतिनिधि पहाडों को छोड़ रहा है।

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