उत्तराखंड

भागवत वेदरूपी कल्पवृक्ष का परिपक्व फल है – डॉ श्याम सुंदर पाराशर

उत्तरकाशी  –  अष्टादश महापुराण एवं अतिरूद्र महायज्ञ समिति के तत्वावधान में आयोजित अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत महापुराण कथा भागवत मर्मज्ञ डॉ. श्यामसुंदर पाराशर जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण के मंगलाचरण का प्रथम श्लोक ‘जन्माद्यस्य यतोन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट् तेने ब्रह्मह्रदाय आदि कवये मुह्यन्ति यत्सूरयः। तेजो वारिमृदां यथा विनिमयो यत्रत्रिसर्गो मृषा। धाम्ना स्वेन सदानिरस्तकुहकं सत्यंपरं धीमहि।’ पर विचार करते हुए कहा कि जिससे इस जगत की उत्पत्ति पालन और संहार होता है। जो सर्वज्ञ है व स्वयं प्रकाशित है जिन्होंने सृष्टि के आदि में आदिकवि ब्रह्मा जी को संकल्प मात्र से ब्रह्मा जी को वेद का ज्ञान प्राप्त किया जिसके विषय में बड़े-बड़े विद्वान भी मोहित हो जाते हैं। जैसे तेज में जल का जल में स्थल का और स्थल में जल का भ्रम होता है उसी प्रकार यह त्रिगुणमई जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति रूपा सृष्टि मिथ्या होने पर भी सत्य प्रतीत हो रही है जो अपने स्वयं प्रकाश से माया एवं माया के कार्य से सर्वथा मुक्त हैं ऐसे सत्य स्वरूप भगवान का हम ध्यान करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि भागवत वेदरूपी कल्पवृक्ष का परिपक्व फल है।

निगमकल्पतरोर्गलितं फलं, शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम्‌। पिबत भागवतं रसमालयं, मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः’ अर्थात श्रीमद्भागवत महापुराण में मोक्ष पर्यन्त फलकी कामना से रहित परम धर्मका निरूपण हुआ है। इसमें शुद्ध अन्त:करण सत्पुरुषों के जानने योग्य उस वास्तविक वस्तु परमात्माका निरूपण हुआ है, जो तीनों तापों का जड़से नाश करनेवाली और परम कल्याण देनेवाली है। अब और किसी साधन या शास्त्रसे क्या प्रयोजन। जिस समय भी सुकृति पुरुष इसके श्रवण की इच्छा करते हैं, ईश्वर उसी समय अविलम्ब उनके हृदय में आकर बन्दी बन जाता है। शुकदेव रूपी शुक के मुख का संयोग होने से अमृत रस से परिपूर्ण है। यह रस ही रस है। इसमें न छिलका है, न गुठली। अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत महापुराण में 108 भागवताचार्य मूल पारायण कर रहे हैं जिनमें भागवतचार्य पं. शिव प्रसाद सेमवाल, परमानंद नौटियाल, डॉ. कुलानंद रतूड़ी, रामचंद्र व्यास, लक्ष्मी प्रसाद चमोली, कृष्णानंद खंडूड़ी, डॉ. द्वारिका प्रसाद नौटियाल, ज्योति प्रसाद उनियाल, सुनील दत्त, माधव नौटियाल, दयानंद डबराल, कमलेश उनियाल, ब्रह्मानंद उनियाल, सुरेश चंद्र भट्ट, नरेश भट्ट, लवलेश दुबे, चन्द्रशेखर नौटियाल, दुर्गेश खंडूड़ी,आशुतोष भट्ट, शिवप्रसाद, हरीश नौटियाल, भीमदेव थपलियाल, रामनरेश, डॉ. पंकज सेमवाल, उमाशंकर भट्ट, द्वारिका प्रसाद, सुरेश चंद्र उनियाल, राजेंद्र प्रसाद, कृष्णानंद नौटियाल, दिनेश भट्ट, आज डिमरी, अरविंद उनियाल, आशुतोष डंगवाल सहित 108 आचार्य व्यास पीठ विराजमान हैं। कथा पांडाल में अनेकों देवडोलियां की उपस्थिति में यज्ञ के यजमान व आयोजन समिति के पदाधिकारियों सहित असंख्य श्रद्धालुओं द्वारा अमृतमयी कथा का रसपान कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!