हिंदुत्व से आगे भी भाजपा का दांव
अजीत द्विवेदी
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जो माहौल बना है उसी के असर में अगले लोकसभा चुनाव की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है। वैसे लोग जो मंदिर के कार्यक्रम का प्रत्यक्ष विरोध नहीं कर रहे हैं लेकिन इसके राजनीतिक इस्तेमाल और असर से चिंतित हैं वे सोशल मीडिया में इसे लेकर तंज कर रहे हैं। वे लिख रहे हैं कि फॉक्सकॉन की फैक्टरी गुजरात में लगेगी, टाटा-एयरबस की फैक्टरी गुजरात में लगेगी, टेस्ला की भी फैक्टरी गुजरात में लगेगी, बुलेट ट्रेन गुजरात में चलेगी और उत्तर प्रदेश में मंदिर बनेगा! इन कटाक्ष के जरिए यह नैरेटिव बनाने का प्रयास हो रहा है कि समूचे उत्तर भारत में हिंदू आस्था को उभार कर वोट की राजनीति हो रही है, जबकि औद्योगिक विकास और रोजगार की व्यवस्था गुजरात में की जा रही है।
यह भी कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश और बाकी हिंदी पट्टी के राज्यों के युवाओं को गुजरात जाकर ही नौकरी करनी है क्योंकि नरेंद्र मोदी की सरकार उत्तर भारत में रोजगार के अवसर पैदा करने वाले उद्योग नहीं लगवा रही है। एक स्तर पर यह बात सही है और निश्चित रूप से युवाओं को एक समूह को यह बात अपील भी करती होगी। लेकिन क्या यह बात व्यापक हिंदू समाज को प्रभावित कर पाएगी? यह मुश्किल लगता है क्योंकि मंदिर और आस्था का मामला मोदी और भाजपा के चुनावी दांव का सिर्फ एक पहलू है।
नरेंद्र मोदी ने मंदिर के कार्यक्रम को सिर्फ हिंदू आस्था और मंदिर मुद्दे तक सीमित नहीं रहने दिया है। उन्होंने आस्था के साथ हिंदू गौरव को जोड़ दिया है और उसके साथ आधारभूत ढांचे के विकास, रोजगार की संभावना और शहरों के सौंदर्यीकरण को भी शामिल किया है। इसके साथ साथ विश्वकर्मा योजना के जरिए जातियों को साधने की व्यवस्था की गई है और लाभार्थियों को शामिल किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले 30 दिसंबर के अयोध्या दौरे में अपने चुनावी दांव की एक झलक दिखलाई। उन्होंने करीब 16 हजार करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया तो रामभक्तों को याद दिलाया कि रामलला साढ़े पांच सौ साल बाद अपने घर में विराजमान होने जा रहे हैं। ध्यान रहे प्रधानमंत्री बार बार एक हजार साल की गुलामी की याद दिला रहे हैं और देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्ति दिलाने का दावा कर रहे हैं तो दूसरी ओर पांच सौ साल बाद रामलला के विराजमान होने की बात भी कह रहे हैं।
पांच सौ साल के बाद रामलला के विराजमान होने की बात कहने के साथ ही प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि सिर्फ रामलला को घर नहीं मिला है, बल्कि देश के चार करोड़ लोगों को भी अपना आवास मिला है। इसके बाद वे मुफ्त रसोई गैस की उज्ज्वला योजना की 10 करोड़वीं लाभार्थी के घर गए और टूटे-फूटे घर में बैठ कर चाय पी। सोचें, यह कितना मजबूत नैरेटिव है? लाभार्थी के इस नैरेटिव ने पिछले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को बहुत फायदा पहुंचाया था। उसके बाद से तो कई योजनाएं ऐसी चली हैं, जिनका सीधा लाभ करोड़ों लोगों तक पहुंच रहा है। पिछले चुनाव के समय ही किसान सम्मान निधि की शुरुआत हुई थी, जो अभी तक चल रही है और कोरोना महामारी के बाद 80 करोड़ लोगों को पांच किलो मुफ्त अनाज की योजना शुरू हुई थी, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने पांच साल के लिए बढ़ाने का ऐलान कर दिया है। सो, चार करोड़ लोगों को घर, उज्ज्वला योजना के लाभार्थी के घर की चाय और पांच किलो मुफ्त अनाज पा रहे 80 करोड़ लाभार्थियों को हिंदू गौरव से जोड़ कर मोदी ने जो दांव चला है उसकी क्या काट विपक्षी गठबंधन के पास है?
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या के पुनर्विकसित रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया। वहीं से दो अमृत भारत ट्रेन और छह वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई। इसके बाद उन्होंने अयोध्या हवाईअड्डे का उद्घाटन किया, जिसका नाम महर्षि वाल्मिकी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा अयोध्याधाम रखा गया है। मोदी विरोधी तकनीकी खामी निकाल कर बता रहे हैं कि हिंदू धर्म में धाम तो चार ही है मोदी सरकार अयोध्या को धाम बना कर गलत कर रही है। लेकिन उनकी नजर इस पर नहीं जा रही है कि इस हवाईअड्डे की मदद से बुनियादी ढांचे के विकास का कैसा मैसेज बना है और महर्षि वाल्मिकी के नाम पर इसके नामकरण से दलित समुदाय की एक बड़ी जाति के अंदर गर्व का कैसा भाव पैदा हुआ है! रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने व्यापक हिंदू समाज को साधने की कोशिशों के साथ साथ हिंदू समाज के अंदर के जातीय विभाजन को भी एड्रेस करने का प्रयास इसके जरिए हुआ है।
भव्य राममंदिर के निर्माण के साथ साथ पहले दिन से यह प्रचार किया जा रहा है कि अयोध्या को अंतरराष्ट्रीय शहर के तौर पर विकसित किया जा रहा है, जहां दुनिया भर से लोग रामलला के दर्शन करने आएंगे। इसके लिए नए स्टेशन और नए हवाईअड्डे बनाए जा रहे हैं। शहर के आसपास विकास की बड़ी गतिविधियां चल रही हैं। होटल्स बन रहे हैं और बुनियादी ढांचे का विकास किया जा रहा है। इसका यह फायदा समझाया जा रहा है कि इससे नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं। ध्यान रहे भाजपा राममंदिर के उद्घाटन के बाद देश भर से रामभक्तों को अयोध्या में दर्शन कराने का अभियान छेडऩे वाली है। तीर्थयात्रियों की जितनी अधिक संख्या होगी व्यापार की संभावना उतनी ज्यादा बढ़ेगी। यह अलग बात है कि उद्योग लगने से ज्यादा सम्मानजनक और स्थिरता वाला रोजगार मिलता है, जो गुजरात के लोगों को मिल रहा है। उसके मुकाबले कम सम्मानजनक रोजगार उत्तर प्रदेश के लोगों को मिलेगा लेकिन उस रोजगार के साथ आस्था और हिंदू गर्व की भावना भी जुड़ी है।
सो, अगले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के रणनीतिक दांव में सिर्फ आस्था, हिंदुत्व या राष्ट्रवाद का मामला नहीं है। उसके साथ अलग-अलग तरीके से जातीय संतुलन बनाया जा रहा है, जो तीन राज्यों में मुख्यमंत्रियों और उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति में भी दिखा है। पीएम विश्वकर्मा योजना के जरिए पिछड़ी और कारीगर जातियों को अवसर मुहैया कराया जा रहा है। यह भी जातिगत समीकरण के नैरेटिव का ही हिस्सा है। इसके अलावा लाभार्थी और बुनियादी ढांचे के विकास का नैरेटिव भी सेट किया जा रहा है।