उत्तराखंड

मुख्य सचिव ने वनाग्नि को रोकने के लिए जारी किया आदेश

देहरादून –   वनों में आग लगने के कारण भारी नुकसान होने से मुख्य सचिव ने आदेश जारी किया है – उपरोक्त विषयक आप अवगत हैं कि वनों में अग्नि दुर्घटनाओं से प्रतिवर्ष बहुमूल्य राष्ट्रीय वन सम्पदा की अपूरर्णीय क्षति होती है। वनों में अग्नि की रोकथाम के लिए यद्यपि वन विभाग द्वारा प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित की जाती है, परन्तु वनाग्नि पर नियंत्रण का दायित्व केवल वन विभाग द्वारा निर्वहन किया जाना सम्भव नहीं है। इस वर्ष शीतकाल में प्रदेश में वर्षा न होने, आर्द्रता में कमी, सूखी ठंण्ड एवं लम्बे Dry Spell होने के कारण वर्तमान वनाग्नि सत्र में उत्तराखण्ड के वनों में वनाग्नि की अधिक घटनायें प्रकाश में आने की सम्भावना है, जिसके नियंत्रण हेतु वन विभाग के सम्बन्धित अधिकारियों/कार्मिकों द्वारा युद्ध स्तर पर कार्यवाही करते हुए एस०डी०आर०एफ०, पैरामिल्ट्री फोर्स तथा आपदा QRT का सहयोग लिया जाना सम्भावित है। जिलाधिकारियों के सक्रिय सहयोग के बिना वनाग्नि की घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण सम्भव नहीं है।

2- वन विभाग द्वारा वन क्षेत्रों की वनाग्नि हेतु संवेदनशीलता का आंकलन करते हुए Forest Fire Risk Zonation Mapping किया गया है, जिसके फलस्वरूप जनपद अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चम्पावत, बागेश्वर, पौड़ी, टिहरी एवं उत्तरकाशी चीड़ बाहुल्य वन क्षेत्र उपलब्ध होने के कारण अत्यन्त संवेदनशील है। वनाग्नि सत्र-2024 में उपलब्ध वित्तीय संसाधनों का प्रभावी उपयोग करते हुए वनाग्नि के सुचारू रूप से नियंत्रण / रोकथाम हेतु प्रभावी कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।

1. उत्तराखण्ड शासन, वन एवं पर्यावरण अनुभाग-2 के शासनादेश संख्या-554/ 1(2)व०ग्रा०वि०/2004-9 (22)/2001, दिनांक 27 मार्च, 2004 द्वारा वनाग्नि सुरक्षा हेतु जिलास्तरीय, विकासखण्ड एवं वन पंचायत स्तर पर समितियों के गठन हेतु निर्देश निर्गत किये गये हैं। शासनादेश के अनुसार इन समितियों का गठन तथा इनके स्तर से वनाग्निसुरक्षा के उपाय सुनिश्चित कराये जायें

2. वनाग्नि सत्र- 2024 प्रारम्भ (15 फरवरी 2024) होने से पूर्व समस्त सम्बन्धित विभागों की बैठक अतिशीघ्र सम्पन्न कर वनाग्नि नियंत्रण से संबंधित व्यवस्था का विधिवत् अनुश्रवण कर लिया जाये, जिससे कि वनों में होने वाली वनाग्नि घटनाओं को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सके।

3. वनाग्नि सत्र-2024 प्रारम्भ (15 फरवरी 2024) होने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लिया जाये कि सभी जिलाधिकारी जनपद स्तरीय वनाग्नि प्रबन्धन योजना को अपनी अध्यक्षता में गठित समिति के माध्यम से अनुमोदित कराते हुए मुख्य वन संरक्षक, वनाग्नि एवं आपदा प्रवन्धन, उत्तराखण्ड को उपलब्ध करा दी जाये ताकि मुख्य वन संरक्षक, वनाग्नि एवं आपदा प्रबन्धन, उत्तराखण्ड के स्तर से प्रदेश स्तरीय वनाग्नि प्रबन्धन योजना समयान्तर्गत तैयार की जा सके।

4. समस्त जिलाधिकारियों से यह अपेक्षा है कि वे अपनी व्यवस्था के अनुसार वनाग्नि सत्र में समस्त संबंधित विभागों की आवश्यकतानुसार साप्ताहिक अथवा पाक्षिक बैठक आयोजित करें, जिसमें वनाग्नि घटनाओं की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु की गयी कार्यवाहियों की समीक्षा एवं सम्बन्धितों को आवश्यक निर्देश दिये जायें।

5. राजस्व विभाग, पुलिस विभाग, चिकित्सा, लोक निर्माण विभाग, वन पंचायत प्रबंधन आदि अन्य विभागों से समन्वय स्थापित किया जाये। आवश्यकता पड़ने पर सेना व अर्द्धसैनिक बलों का वनाग्नि नियंत्रण हेतु सहयोग प्राप्त किया जाये। सम्बन्धित प्रभागीय वनाधिकारियों को वनाग्नि सत्र के दौरान अन्य विभागों क्रमशः SDRF, आपदा QRT, अग्नि शमन विभाग आदि का सम्पूर्ण सहयोग आवश्यकतानुसार प्रदान किया जाये।

6. सिविल सोयम एवं पंचायती वनों में वनाग्नि की रोकथाम / नियंत्रण एवं शमन में राजस्व एवं पुलिस विभाग के कर्मचारियों का दायित्व सम्बन्धित जिलाधिकारी द्वारा निर्धारित किया जाये। राजस्व भूमि तथा सिविल एवं सोयम वनों में वनाग्नि प्रबन्धन एवं वनाग्नि शमन व्यवस्था स्थापित करने हेतु संबंधित उप जिलाधिकारियों का उत्तदायित्व भी निर्धारित कराया जाना आवश्यक है।

7. संकटकाल में वनाग्नि पर नियंत्रण पाने के लिए संबंधित जिलाधिकारियों द्वारा अन्य विभागों के वाहनों को अधिग्रहित कर इन्हें संबंधित प्रभागीय वनाधिकारियों के नियंत्रण में उपयोग हेतु आवंटित किया जाय।

8. वनाग्नि सत्र में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए पुलिस विभाग के सूचना तंत्र का भी उपयोग किया जाय।

9. वनाग्नि सत्र के दौरान राजस्व विभाग की मासिक / पाक्षिक समीक्षा बैठक में वनाग्नि नियंत्रण व्यवस्था का विषय भी एजेण्डा में सम्मिलित किया जाय।

10. जनपदों के अन्तर्गत गठित समुदाय आधारित संगठनों यथा-महिला मंगल दलों/युवक मंगल दलों/वन पंचायतों / एन०सी०सी०/एन०एस०एस० एवं स्वयं सेवी संस्थाओं आदि का चिन्हिकरण कर व्यापक प्रचार-प्रसार के माध्यम से वनाग्नि नियंत्रण हेतु इनका समुचित सहयोग प्राप्त किया जाये।

11. सिविल/वन पंचायत एवं कई आरक्षित वनों में यनाग्नि घटनाओं का मुख्य कारण (तेज हवाओं के कारण) वनों से सटी हुई कृर्षि भूमि में पराली (आड़ा) जलाने से पाया गया है। ग्रामीणों से कृर्षि भूमि में पराली (आड़ा) जलाने की कार्यवाही को रोकने अथवा सावधानीपूर्वक जलाने हेतु व्यापक अपील / प्रचार-प्रसार कराने की आवश्यकता

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