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जी-20 का डंका बजता रहेगा

अजीत द्विवेदी

जी-20 का शिखर सम्मेलन समाप्त हो गया है लेकिन उसका डंका बजना अभी जारी रहेगा। अभी तक भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलने और उसके आयोजन की तैयारियों को लेकर जय-जयकार हो रही थी लेकिन अब सफल आयोजन का डंका बजेगा। दुनिया भर के देशों के नेता दिल्ली से लौटते लौटते भारत के आयोजन की तारीफ करके गए हैं। जी-20 के नए अध्यक्ष ब्राजील के राष्ट्रपति इनासियो लूला डी सिल्वा ने तो यहां तक कहा कि उनका देश भारत की तरह ही आयोजन करने की भरपूर कोशिश करेगा। आयोजन की भव्यता के साथ साथ इसकी सफलता को लेकर भी बहुत चर्चा हुई है। नई दिल्ली घोषणापत्र पर सौ फीसदी सहमति की तारीफ अलग अलग तरह से सभी देशों ने की। इस घोषणापत्र को रूस ने अपनी जीत बताया तो फ्रांस के राष्ट्रपति ने यूरोप की जीत बताया।

भारतीय मीडिया में इस बात का भरपूर प्रचार हुआ कि भारत ने 37 पन्नों और 83 पैराग्राफ के नई दिल्ली घोषणापत्र पर सहमति बनवाई। यह भारत की कूटनीतिक जीत है कि इसकी तारीफ रूस भी कर रहा है और यूरोप भी। सारी दुनिया भारत के नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ कर रही है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने यह कह कर भारत का मान और बढ़ा दिया कि सही समय पर सही  देश को जी-20 का नेतृत्व मिला। इस तरह जी-20 की कूटनीति के बाद अब इसके राजनीतिक इस्तेमाल के लिए मैदान सज गया है।

ऐसा नहीं है कि पहले इसका राजनीतिक इस्तेमाल नहीं हो रहा था। जब से भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिली तभी से इसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वगुरू की छवि बनाने के लिए किया जाने लगा था। उसके बाद एक सच्चे और बड़े इवेंट के आयोजक की तरह प्रधानमंत्री ने इसका विस्तार बहुत व्यापक कर दिया। पिछले साल दिसंबर में भारत को इसकी अध्यक्षता मिली थी उसके बाद नौ महीने में देश के 60 शहरों में जी-20 से जुड़ी 220 से ज्यादा बैठकें हुईं। इन बैठकों में दुनिया के अलग अलग देशों के 25 हजार से ज्यादा प्रतिनिधि शामिल हुए। ब्राजील में सिर्फ पांच शहरों में बैठकें होंगी। भारत में पर्यटन से लेकर खाद्य सुरक्षा और लघु व छोटे उद्योगों से लेकर स्वास्थ्य तक हर क्षेत्र के बारे में विचार किया गया और उसका रोडमैप तैयार किया गया। अफ्रीकी संघ के 55 देशों की इसमें बड़ी भागीदारी रही और जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन अफ्रीकी संघ को जी-20 का हिस्सा बनाने का ऐलान हुआ। भारत को इसका श्रेय मिला कि उसने वसुधैव कुटुम्बम और अपने समावेशी विकास के सिद्धांत पर चलते हुए अफ्रीका को इस विकसित देशों के समूह का हिस्सा बनवाया।

आमतौर पर वित्त और विदेश नीति से देश की आम जनता को कोई खास मतलब नहीं होता है। तभी 24 घंटे चलने वाले न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया के बावजूद बजट से लोगों को इतना ही मतलब होता है कि क्या महंगा हुआ और क्या सस्ता और कूटनीति से सिर्फ इतना सरोकार होता है कि पाकिस्तान को भारत ने ठीक कर दिया, पाकिस्तान जाकर क्रिकेट नहीं खेल रहे हैं, उनके यहां आना-जाना बंद कर दिया है आदि। थोड़े पढ़े लिखे लोगों का सरोकार इतना होता है कि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप, कनाडा आदि का वीजा मिल जाए। यह पहला मौका था, जब सरकार ने जी-20 के बहाने कूटनीति को पढ़े-लिखे, सम्भ्रांत शहरी वर्ग के ड्राइंग रूम से निकाल कर गांव-कस्बों के चौपाल और चाय की दुकान तक पहुंचा दिया। पिछले नौ महीने से हर व्यक्ति जी-20 के बारे में बात करता हुआ था। उसे इसका एजेंडा भले न मालूम हो लेकिन यह पता चल गया था कि भारत में बहुत बड़ा आयोजन हो रहा है, जिसमें दुनिया की सारी महाशक्तियों के नेता नई दिल्ली में जुट रहे हैं। सरकार, भाजपा और आरएसएस के प्रचार तंत्र से उनको यह भी पता चल गया था कि मोदी हैं तभी ऐसा हो रहा है। देश की ज्यादातर आबादी अब भी यही मान रही है कि पहली बार इस तरह का आयोजन भारत में हुआ है।

बची खुची कसर आयोजन के तीन दिन यानी आठ और दस सितंबर की कवरेज ने पूरी कर दी। दुनिया के महाबली देशों के विमानों का हवाईअड्डे पर उतरना, नेताओं का भारत मंडपम में पहुंचना, मोदी का उन्हें गले लगाना, दुनिया की महाशक्तियों के बीच बैठे मोदी का गैवल यानी हथौड़ा पीटना और राजघाट पर एक साथ 20 से ज्यादा नेताओं और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों का नेतृत्व करते हुए उन्हें महात्मा गांधी की समाधि पर ले जाना, इन सबसे बेहद पावरफुल तस्वीर बनी। भूख, बेरोजगारी, गरीबी अपनी जगह है और गर्व अपनी जगह है। राष्ट्र का सम्मान, तिरंगे का गौरव आदि ऐसी भावनाएं हैं, जो नागरिकों को अपने जीवन की तमाम असुविधाओं और परेशानी से आगे ले जाती हैं। इस आयोजन के बाद यह कहते हुए बहुत से लोग मिल जाएंगे कि ‘कुछ भी हो मोदी ने कमाल कर दिया’। यह धारणा अपने आप भाजपा और नरेंद्र मोदी का चुनावी स्टॉक ऊंचा करने वाली है। इसके बाद जो प्रचार होगा उससे रही सही कसर और पूरी हो जाएगी।

प्रचार की शुरुआत भी हो गई है। शिखर सम्मेलन समाप्त होने के तुरंत बाद सरकार के मंत्रियों और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की ओर से प्रधानमंत्री मोदी को बधाई देने का सिलसिला शुरू हो गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कमान संभाली। दोनों ने शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए मोदी को बधाई दी। इस आयोजन के लिए भारत के शेरपा रहे अमिताभ कांत और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पहले ही दिन ऐलान कर दिया कि भारत का नेतृत्व दुनिया में घोषित हो गया। अखबारों में यह लिखा जाने लगा कि जी-20 का सफल आयोजन भारत के लिए वही लम्हा है, जो 2008 में बीजिंग ओलंपिक का आयोजन चीन के लिए था। यानी जिस तरह से बीजिंग ओलंपिक के आयोजन के बाद चीन महाशक्ति बनने की ओर तेजी से बढ़ा उसी तरह भारत जी-20 के आयोजन के बाद बढ़ेगा। इस आयोजन के बाद दो और आयोजन की घोषणा हो चुकी है। पहले 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र होगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जय-जयकार होगी, उनका अभिनंदन होगा। फिर मोदी ने नवंबर में जी-20 के एक वर्चुअल सम्मेलन का प्रस्ताव रखा है, जिसमें नई दिल्ली घोषणापत्र के प्रस्तावों पर अमल की समीक्षा होगी। प्रधानमंत्री मोदी चाहेंगे कि दिल्ली सम्मेलन की चर्चा होती रहे। इस बीच ‘यह समय युद्ध का नहीं है’ के अपने जुमले के लिए मोदी नोबल पुरस्कार के लिए नामित होते हैं तो उसकी अलग चर्चा होगी।

अगर जी-20 के एजेंडे को देखें और इसके प्रस्ताव पर नजर डालें तब भी सब कुछ अच्छा अच्छा दिखेगा। इसमें बार बार वसुधैव कुटुम्बकम की बात है, समावेशी विकास की बात है, लैंगिक समानता व सभी महिलाओं को सशक्त बनाने की चर्चा है, भविष्य के लिए हरित विकास की बात है, टिकाऊ विकास और डिजिटल डिवाइड को दूर करने की बात है, बहुपक्षीय संस्थानों के निर्माण पर जोर है और दुनिया के देशों के बीच एकता बनाने की बात है। ‘वन अर्थ, वन फैमिल, वन फ्यूचर’ का संदेश है। नई दिल्ली घोषणपत्र में ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ लेकिन पहले इसकी इतनी चर्चा हो चुकी है कि भाजपा के तमाम नेता भारत को ‘ग्लोबल साउथ’ की सबसे प्रमुख आवाज के तौर पर उभरने का दावा कर रहे हैं। अगले दो महीने में होने वाले राज्यों के चुनाव और अगले साल के लोकसभा चुनाव के लिए यह प्रचार का मुख्य एजेंडा होगा कि भारत ने नई दिल्ली घोषणापत्र पर सौ फीसदी सहमति बना कर असंभव को संभव बनाया, 55 देशों के अफ्रीकी संघ को जी-20 का सदस्य बनाया, जिसके बाद इसक नाम जी-21 हो गया और ‘ग्लोबल साउथ’ की प्रमुख आवाज बन कर उभरा। हैरानी नहीं होगी अगर भाजपा के घोषणापत्र में नई दिल्ली घोषणापत्र की चीजें शामिल हों।

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