हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की कोशिश है कि परंपरा न टूटे
हरियाणा – हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की कोशिश है कि परंपरा न टूटे।अभी तक परंपरा केंद्र व राज्य में एक ही दल अथवा गठबंधन की सरकार बनने की। इतिहास लगातार तीसरी बार राज्य की सत्ता पर काबिज होने का। यदि कामयाब होती है तो भाजपा के लिए हरियाणा अन्य राज्यों के चुनावी रण का प्रस्थान बिंदु सिद्ध होगा।
लोकसभा चुनाव के बाद सबसे पहले हरियाणा में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में वह विफल हुई तो यह नेरेटिव बनेगा कि देश में पार्टी का ग्राफ गिरने लगा है। इसलिए भाजपा के लिए हरियाणा एक कुरुक्षेत्र है जो उसे करो या मरो का संदेश दे रहा है। इस रण में चुनौती दुश्मनों से ही नहीं, अपनों
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुरुक्षेत्र में अपनी पहली चुनावी जनसभा में यह जिक्र किया कि हरियाणा के लोग तो 50 साल से उसी की सरकार बनाते आ रहे हैं, जिसकी केंद्र में होती है। इस बार भी ऐसा करिश्मा हो जाए, इसके लिए पार्टी पूरी ताकत लगा रही है, लेकिन एंटी इंकम्बेंसी और किसान, पहलवान व जवान का जो मुद्दा चल गया है, वह उसे खुलकर खेलने से रोक रहा है। वह रक्षात्मक है। साढ़े नौ साल के शासन के बाद मनोहर लाल को चुनाव से केवल छह माह पहले सीएम पद से हटाने के बाद उन्हें अब पीएम मोदी व गृह मंत्री अमित शाह की रैलियों से दूर रखा गया। प्रचार पोस्टरो-बैनरों से वह नदारद हैं। भाषणों में उनका नाम तक नहीं लिया जा रहा। शीर्ष नेतृत्व को शायद यह लगता है कि भाजपा से ज्यादा विरोध मनोहर लाल का है। लोकसभा चुनाव में पहले ही दस में से पांच सीटें भाजपा गंवा चुकी है।
हरियाणा में जाट (22 प्रतिशत), दलित (21 प्रतिशत), ओबीसी (30 प्रतिशत) वोटबैंक को निर्णायक माना जाता है। जाट वोट परंपरागत रूप से भाजपा के खिलाफ माने जाते रहे हैं और इस बार किसान व पहलवान आंदोलनों के असर से भाजपा को और नुकसान हो सकता है। इसलिए भाजपा का जोर ओबीसी मतदाताओं पर है। नायब सिंह सैनी खुद ओबीसी हैं। कांग्रेस ने हुड्डा व सैलजा दोनों की सीएम पद के लिए दावेदारी खुली रखी है, इसलिए हुड्डा के प्रभाव से जाट मतदाता और सैलजा की वजह से दलित वोट बैंक में ज्यादा हिस्सा झटकने की कोशिश उसकी है। आम आदमी पार्टी ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।केजरीवाल पंजाब की तरह हरियाणा में भी अपनी सरकार बनाना चाहते हैं।