उत्तराखंड

सरकार के उदासीन रवैया के कारण कई गाँव हुये वीरान

पूर्व सैनिक दर्मियान सिंह ने बयां की ये दास्तान

उत्तरकाशी। ये विरान छाया चित्र है उन गांवो का जहां कभी पूरे गांव खुब भरे रहते थे। बच्चो की किलकारियां महिलाओ की तेज आवाज और पुरूषो के तेज ठहाके खुब सुनने को मिलते थे लेकिन आज ये गांव विरान पडे है। यहां के निवासी हैरान थे सरकार की नीतियो से और परेशान थे आने वाले भविष्य के प्रति और अन्तत ईक्कीसवी सदी के प्रारम्भ मे पलायन कर गये| ये गांव है जिला उत्तरकाशी के अधिन नौगाव विकासखंड के अन्तर्गत आने वाली कोटला ग्रामसभा की जहां 4 गावों को मिलाकर ग्रामसभा बनी | ये गांव है जखाली,धौसाली, घुंड और कोटला सभी गावों मे लगभग 210 परिवार रहते थे। लेकिन सरकार की नीतियो के कारण लोग इस खुबसुरत जगह को छोडने को मजबुर हो गये। जहां कोटला में लगभग 78 प्रतिशत लोगों ने पलायन किया वही बाकी 3 गावों में 98 प्रतिशत लोगों ने पलायन कर लिया। रहते भी तो कैसे ना शिक्षा ना चिकित्सा नाही आवागमन के लिये रोड रास्ते भी हर साल बरसात मे टुट जाते थे और क्षेत्र के प्रतिनीधि भी आज तक ऐसे तीसमारखां बने जिन्होने कभी इन चीजो पर ध्यान ही नही दिया।

 

ईक्कीसवी सदी के प्रारम्भ तक अगर किसी ने पलायन को रोका तो वह था यहां का नकदी फसलो का व्यवसाय यहां की ऊपजाऊ जमीन में हर परिवार कई कुन्टल चौलाई, मड़वा,राजमा आदि ऊगाया करते थे और यहां के आलू की मंडी मे भी विशेष मांग होती थी, हर परिवार आलू के सिजन मे 30 से 80 कुन्टल आलू बैचा करता था। जिस कारण कई सालो तक यह रोजगार पलायन पर भारी पडा़ फिर कुछ सरकार की अपेक्षा से नाखुश और कुछ जगली जानवरों के आतंक से लोग धीरे धीरे परेशान हो गये ये सब परेसानियां और आने वाली पीढियो के भविष्य को ध्यान में रखते हुये अधिकतर परिवार पलायन कर गये 1998 के आसपास उस समय के ग्राम प्रधान सोवेन्द्र सिह राणा जी के विशेष निवेदन पर उत्तरकाशी विधायक जी ग्राम जखाली में मन्दिर सोन्दर्यकरण और खेल मैदान का उदगाटन करने आये खूब भाषण बाजी हुयी 2 साल के भीतर रोड आने का भरोषा दिया गया लेकिन दुर्भाग्य की बात है 2 साल की जगह आज 24 साल हो गये लेकिन रोड़ अभी भी मुंगेरीलाल के सपने के समान है।

गावों के उपरी क्षेत्र मे सभी परिवारो के बगीचे है एक समय था जब यहां खुब सेब हुआ करता था लेकिन अब सारे बगीचे बंजर है कारण यह रहा की यहा के लोगो को सेब उत्पादन की जानकारी का ना होना और पानी के प्राकृतिक जलाशयो का विलुप्त होना। अगर इस बागवानी को कोई बचा सकता था तो वह थी सरकारी मदद जिससे बगीचों तक पानी की व्यवस्था की जाती लेकिन सरकार तो सरकार होती है सरकार के कानों में इन 200 परिवारों की पलायन की जूं तक नहीं रेंगी। और इस क्षेत्र के जितने भी प्रतिनिधि बने उनका दोष भी सरकार से बड़ा था क्योंकि इन लोगों ने कभी इस क्षेत्र को बचाने की कोशिश ही नहीं की बल्कि इस क्षेत्र के प्रतिनीधियो ने सबसे पहले पलायन किया अगर वे लोग पलायन ना करते तो शायद यह क्षेत्र आज आवाद होता आजतक न जाने कितने प्रतिनीधि आये और चले गये विधायक , सांसद आये और घोषणा करके चले गये पर ये क्षेत्र आज भी विरान है।

बधियाड क्षेत्र जिसे आज तक सबसे दूरस्थ क्षेत्र कहा जाता था वह भी अब रोड, चिकित्सा और स्कूलों से सुशोभित है लेकिन इस क्षेत्र का अभी तक दुर्भाग्य बना हुआ है। क्षेत्रिय नेताओ प्रधान , क्षेत्रपंचायत ,जिला पंचायत और माननीय विधायक और सांसद महोदय ध्यान दे इस क्षेत्र को आवाद करने के सम्बन्ध में आप आये सरकारी तंत्र को इस क्षेत्र में भेजें और मुआयना करें जिससे क्षेत्रिय लोगो को फिर से इन चार मंजिला भवनो को आवाद करने का मौका मिलेगा और यहां के निवासी फिर से एक बार अपने खेतों मे खुब मेहनत करते दिखेंगे।

दर्मियान सिंह पंवार (भूतपूर्व सैनिक)

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