वीवीआईपी विधानसभा क्षेत्र के तीन ग्रामसभाओं ने किया लोकसभा चुनाव का बहिष्कार
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के घोषणा पत्र की तीसरे नंबर की घोषणा पत्र का भी नही लिया संज्ञान
सड़क न होने से ग्रामीणों ने धीरे धीरे गाँव छोड़ना किया शुरू
डोईवाला। देहरादून राजधानी की डोईवाला विधान सभा सीट को उत्तराखंड की वीवीआईपी सीट मानी जाती है क्योंकि इस विधानसभा सीट से दो दो मुख्यमंत्री रहे। डॉ रमेश पोखरियाल निशंक डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए थे।उसके बाद त्रिवेन्द्र रावत भी इसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर प्रदेश के मुखिया बने लेकिन विकास पे नजर डालें तो आज भी तीन गाँव के सैकड़ों परिवार हर नेता से अपनी फरियाद करते करते थक गये।देहरादून से मात्र 34 किमी दूर सन गांव के लोग आज भी गांव तक सड़क पहुंचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालात ये हैं कि ग्रामीणों की जब कहीं सुनवाई नहीं हो रही है तो अब ग्रामीणों ने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। इतना ही नहीं ग्राम पंचायत के तीन गांव एक सुर में अब चुनाव बहिष्कार की बात कर रहे हैं।
उत्तराखंड में हरिद्वार लोकसभा सीट सबसे वीआईपी सीट मानी जाती है। हरिद्वार लोकसभा में देहरादून जिले का डोईवाला विधानसभा क्षेत्र आता है। इस सीट से प्रदेश को दो मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। पहले डॉ रमेश पोखरियाल निशंक और दूसरे त्रिवेंद्र सिंह रावत जो कि दोनों डोईवाला विधानसभा से प्रतिनिधित्व करते हुए मुख्यमंत्री रहे। डॉ रमेश पोखरियाल निशंक अब इसी सीट से सांसद भी हैं। लेकिन राजधानी से मात्र 34 किमी दूर सन गांव के लोगों को आज तक सड़क से न जुड़ पाने का अफसोस है। गांव के लोग तहसील, प्रशासन और सरकार तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं। लेकिन कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही है। अब मजबूरन गांव वालों ने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया है।
ग्राम प्रधान हेमंती रावत ने कहा कि तहसीलदार, एसडीएम से लेकर सभी अधिकारियों को इस बात को लेकर ज्ञापन दे चुके हैं। साथ ही जितनी बार जनप्रतिनिधि से मिलते हैं, सड़क को लेकर ही बात करते हैं। लेकिन अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। गांव के समाजसेवी पुनीत रावत ने कहा कि जब भी सड़क की बात करते हैं तो जनप्रतिनिधि कोई न कोई बहाना बना देते हैं, कभी किसी रिपोर्ट का हवाला, कभी दूसरी सड़क की कनेक्टविटी की बात। कहा कि चुनाव आते हैं तो सारे सियासी दल बड़े बड़े दावे करते हैं। गांव आकर सड़क पहुंचाने का वादा करते हैं, लेकिन आज तक इस पर काम नहीं हो पाया। गांव वालों ने अपने प्रयास से पुराने ग्रामीण रास्ते को तैयार चलने लायक सड़क बनाई है। लेकिन ये सड़क इतनी पतली और छोटी है कि हादसे का डर लगा रहता है।
जब किसी परिवार में किसी तरह की इमरजेंसी होती है, तो फिर सबको परेशानी का सामना करना पड़ता है। गांव से सड़क न होने की वजह से पलायन हो रहा है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के घोषणा पत्र में गांव की सड़क को तीसरी सबसे महत्वपूर्ण घोषणा रखी गई, लेकिन सरकार बनने के बाद इस पर कुछ काम नहीं हो पाया। 85 वर्षीय बुर्जुग महिला प्रसन्नी देवी ने कहा कि पूरी जिदंगी इस गांव में सड़क पहुंचने के इंतजार में निकल गई। अब तो भरोसा भी नहीं कि सड़क आने तक जिंदा रह भी पाएंगे। साथ ही अपनी परेशानियां बताते हुए उन्होंने कहा कि कभी बीमार होते हैं तो बड़ी मुश्किल से अस्पताल तक पहुंच पाते हैं। बच्चों को रोजगार नहीं है। सड़क नहीं है तो कुछ भी सोचना बेकार है।
सिंधवाल गांव और नाहीं कला के गांव के लोगों ने भी सन गांव के चुनाव बहिष्कार के ऐलान का समर्थन करने की बात की है। रायपुर से थानो करीब 16 किमी है। भोगपुर से करीब 5 किमी सड़क बनीं है। लेकिन इसके आगे अभी तीन गांवों को जोड़ने के लिए 8 किमी का सड़क मार्ग बनना बचा हुआ है। जिसके लिए ये तीनों ग्राम पंचायत अब आंदोलन की तैयारी में हैं।
डोईवाला विधानसभा के विधायक बृजभूषण गैराला ने कहा कि वे लगातार इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और संबंधित विभागों से सड़क बनवाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस सड़क निर्माण में वन विभाग से अनुमति नहीं मिल पाई है । जिस वजह से काम रूका पड़ा है। विधायक का कहना है कि वे इसके लिए दूसरे विकल्प पर काम कर रहे हैं, जिससे सभी गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ा जा सके।