उत्तराखंड

प्रेंसिपल साहब के नाम से प्रसिद्ध थे वी0डी0 रतूड़ी

अपने प्रिंसिपल ( सिद्धांत ) के मार्ग पर अडिग रहते हुए सदैव समाज हित के लिए समर्पित रहने वाले प्रिंसिपल साहब

हेमला रतूड़ी ने साझा किया अपनी लेखनी से वी0 डी0 रतूड़ी का व्यक्तित्व

दीपक की तरह फैलाई  जगह-जगह ज्ञान की  रोशनी

ऋषिकेश – (हेमला रतूड़ी की रिपोर्ट) – परमात्मा की युगांतर कारी योजना में कुछ विशिष्ट व्यक्तित्व अपने समय पर आते हैं और अपने कृतित्व से युगपरिवर्तन का कार्य पूर्ण करके संपूर्ण जनमानस में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाकर कुल , क्षेत्र और समाज में चिरस्मरणीय हो जाते हैं । टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में प्रिंसिपल साहब, डीआईओएस साहब नाम लेते ही जिन महापुरुष की छवि उभरती है उन्होंने अपने व्यक्तित्व से सम्मानित पद का भी सम्मान स्थापित किया है।
टिहरी गढ़वाल प्रतापनगर ब्लाक के लंबगांव के समीप स्थित ग्राम जेबाला में सन् १९३० को जन्मे इन महापुरुष का नाम विधाता ने विद्या प्रदान करने वाले, विद्यादत्त ही सुनिश्चित किया जिन्होंने प्रारंभ के सीमित वेतन के समय पर भी अपने वेतन से गरीब छात्रों की फीस जमा करने से लेकर सेवा निवृत्ति के बाद भी अपने वेतन का बड़ा भाग समाज के लिए दान करके पूरे क्षेत्र सहित उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया,, इनके सैकड़ों शिष्य आज पूरे विश्व में अपनी सांस्कृतिक चेतना का प्रसार करते हुए विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्रों में कार्यरत हैं और देवभूमि उत्तराखंड की कीर्ति पताका फहरा रहे हैं।

शिक्षा क्षेत्र में अनुपम योगदान, और विद्यालय के सर्वांगीण विकास के लिए आपको १९७३ में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एशिया के प्रमुख व्यक्तियों पर लिखी गई पुस्तक में भी आपका उल्लेख किया गया है।

सदैव सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण अजातशत्रु स्वभाव से युक्त वृद्धऋषि, ९६ वर्ष की आयु तक निरंतर सक्रिय और जागृत रहे। टिहरी जनपद में ही नही बल्कि कई मुल्कों में उन्हें प्रिंसिपल साहब के नाम से ही जाने जाते थे।
५० की आयु के पश्चात पर वानप्रस्थ का विधान हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच समझ कर बनाया होगा। एक्यावन, बावन , में वन ,, वानप्रस्थ का अर्थ केवल वन में निवास नहीं, अपितु उन उद्देश्यों व अनुशासन का निर्वाह है जिनके लिये वन में निवास के विविध नियम बनाये गये थे। आपने अपने जीवन का एक एक क्षण समाज को समर्पित करते हुए ऋषि चेतना संपन्न होकर पूर्ण जागृत अवस्था में गंगा तट पर एकादशी , सेम नागराजा के प्रिय दिवस पर पवित्र मार्गशीर्ष मास में जीवन यात्रा सम्पन्न की।
देवभूमि की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने के लिए, ऋषिकेश , श्री सेम नागराजा मंदिर, थकलेश्वर महादेव, ओणेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में अष्टादश महापुराण , श्रीमद्भागवत पुराण, शत कुंडीय गायत्री महायज्ञ, शत चंडी महायज्ञ, रुद्र याग, आदि दिव्य यज्ञआयोजन के महत्पुण्यशाली संकल्प पूर्ण किए। साथ ही तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन भी साहसपूर्वक किया.. नवरात्र पर दी जाने वाली चक्रचोट बेला बलि प्रथा और मंदिरों की बकरे की बलि को आपने अपने प्राण दांव पर लगा कर रोके थे जिससे क्षेत्र में नवीन चेतना का संचार हुआ।
२०१० के हरिद्वार महाकुंभ में  आशाराम व्यास , रमेशचंद्र पैन्यूली, आदि सहयोगियों के साथ १३१ देव डोलियों की शोभायात्रा और गंगा स्नान करवाया जिसमें समस्त क्षेत्र की जनता ने उत्साह पूर्वक भाग लिया,,
उत्तराखंड आंदोलन और केदार आपदा के मृतकों के उद्धार के लिए संभवतः पूज्य शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम के मार्गदर्शन में १०८ श्री मद्भागवत पारायण का महायज्ञ संपन्न किया ।
उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में भी आप सक्रिय रूप से शामिल रहे, इन्द्रमणि बडोनी , और उत्तराखंड क्रांति दल के अन्य सभी नेताओं के साथ हमेशा संघर्ष में सम्मिलित रहे , आप उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक भी रहे।
विराट व्यक्तित्व के जीवन की उपलब्धियों को एक लेख में समाहित करना संभव नहीं है , बहुत कुछ छूट जाता है। महामानव के प्रति यह सूक्ष्म भाव समर्पण का प्रयास है।

 

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