समान नागरिक संहिता पर क्या हो रहा है?
क्या केंद्र सरकार जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई कमेटी की सिफारिशों के आधार पर देश में समान नागरिक कानून लागू करेगी? इस मामले की क्रोनोलॉजी देख कर ऐसा लग रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 जून को भोपाल में एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता की वकालत की, जिसके तेजी से घटनाक्रम शुरू हुआ। एक तरफ उत्तराखंड सरकार द्वारा इस मसले पर बनाई गई समिति के सदस्य विधि आयोग से मिले तो दूसरी ओर विधि आयोग आम लोगों से इस पर राय मांगी और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया था कि एक घर दो कानून से नहीं चल सकता है। इन सबके बीच जुलाई महीने में जगह जगह सेमिनार और सम्मेलन होने लगे, जिनमें हर तरफ से समान कानून की वकालत की जा रही थी।
प्रधानमंत्री के बयान के करीब तीन महीने बाद इस मसले पर चौतरफा चुप्पी है। प्रधानमंत्री ने 28 जून के बाद इस बारे में कुछ नहीं कहा। इस मामले पर ध्यान इसलिए गया है क्योंकि एक छोटी सी खबर आई है कि उत्तराखंड सरकार ने इस मसले पर विचार के लिए बनी कमेटी का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ा दिया है। ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट की रिटायर जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में कमेटी बनी है, जो समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार कर रही है। इस कमेटी का गठन पिछले साल हुआ था और दो बार के विस्तार के बाद इसका कार्यकाल 27 सितंबर को खत्म हो रहा था। इसे चार महीने का एक और विस्तार दे दिया गया है।
सोचें, जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने खुद 27 जून को कहा था कि समान नागरिक कानून का मसौदा तैयार है और जल्दी ही उसे सरकार को सौंप दिया जाएगा। इसके अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल में इसकी वकालत की थी। तब कहा गया था कि जुलाई के अंत तक जस्टिस देसाई कमेटी की रिपोर्ट उत्तराखंड सरकार को सौंप दी जाएगी। उस समय चर्चा थी कि इस कमेटी के मसौदे को ही केंद्र सरकार अपना कर पूरे देश में लागू कर सकती है। इस चर्चा को और बल तब मिला, जब जस्टिस देसाई ने दिल्ली में विधि आयोग के सदस्यों से मुलाकात की। फिर विधि आयोग ने लोगों की राय मंगाने का फैसला किया। पहले 13 जुलाई तक का समय दिया गया था, जिसे बाद में बढ़ा कर 28 जुलाई कर दिया गया। एक महीने में आयोग को एक करोड़ से ज्यादा सुझाव मिले हैं।
सो, अब सवाल है कि जब जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई कमेटी ने मसौदा तैयार कर लिया था तो उसने सरकार को सौंपा क्यों नहीं और अब उसको विस्तार क्यों दिया गया है? बताया जा रहा है कि विधि आयोग इस मसले पर मिले एक करोड़ से ज्यादा सुझावों की छंटनी कर रहा है। उसमें मिले कुछ सुझावों को जस्टिस देसाई कमेटी के मसौदे में शामिल किया जा सकता है। जानकार सूत्रों के मुताबिक इसलिए कमेटी को विस्तार दिया गया है ताकि सभी सुझावों की छंटनी हो जाए और उसमें से ऐसे सुझाव अलग कर दिए जाएं, जिनको कमेटी की सिफारिशों में जगह मिलेगी। उसके बाद वह मसौदा उत्तराखंड सरकार को पेश कर दिया जाएगा। संभव है कि विधि आयोग भी उस पर अपनी मुहर लगा दे और फिर केंद्र सरकार उसको अपना ले।